गुरुवार, 13 जुलाई 2023

काँवड़ ● [दोहा]

 302/2023

       

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●© शब्दकार

● डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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मन की काँवड़ शुद्ध कर,ढोता क्या  है   बाँस!

अंतर में शिव- वास है,मिटा वहाँ   की  फांस।।

त्रेतायुग   की   बात  है,रावण था    शिवभक्त।

काँवड़ पावन नीर ले,शिवलिंग कर अभिषिक्त।


काँवड़  जल से कंठ का,करने विष-उपचार।।

परशुराम   रावण सभी,लाए थे   शिव   द्वार।।

गंगाजल  लाते  सभी, शिव के भक्त    अनेक।

शिवलिंग के अभिषेक में, काँवड़ भरे   हरेक।।


सच्ची  श्रद्धा - भक्ति  से,लाते काँवड़    लोग।

नग्न  पाँव   बढ़ते   रहें, करें न कोई    भोग।।

काँवड़-यात्रा   में  सदा,करें नियम   उपवास।

पात्र  मृत्तिका के नहीं,छूते शिव  -  विश्वास।।


काँवड़ - यात्रा से सभी,धुल जाते    हैं     पाप।

मनोकामना  पूर्ण  हो,जान लीजिए    आप।।

काँवड़ -यात्रा हो रही, श्रावण का शुभ मास।

पहले  चौदह  दिन करें, तप से  करते आस।।


काँवड़ -यात्रा में कभी,करते नशा   न   माँस।

तामस का परित्याग हो,शुद्ध चले  तव  साँस।।

काँवड़ -  यात्रा   में   नहीं, करते    भू-स्पर्श।

काँवड़   कंधे  पर रहे,शिव का  करे   विमर्श।।


बम -बम   भोले   बोलिए, काँवड़  कंधे धार।

पावन  गंगाजल    भरे,होगा  तब     उद्धार।।


●शुभमस्तु !


12.07.2023◆3.00प०मा०

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