302/2023
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●© शब्दकार
● डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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मन की काँवड़ शुद्ध कर,ढोता क्या है बाँस!
अंतर में शिव- वास है,मिटा वहाँ की फांस।।
त्रेतायुग की बात है,रावण था शिवभक्त।
काँवड़ पावन नीर ले,शिवलिंग कर अभिषिक्त।
काँवड़ जल से कंठ का,करने विष-उपचार।।
परशुराम रावण सभी,लाए थे शिव द्वार।।
गंगाजल लाते सभी, शिव के भक्त अनेक।
शिवलिंग के अभिषेक में, काँवड़ भरे हरेक।।
सच्ची श्रद्धा - भक्ति से,लाते काँवड़ लोग।
नग्न पाँव बढ़ते रहें, करें न कोई भोग।।
काँवड़-यात्रा में सदा,करें नियम उपवास।
पात्र मृत्तिका के नहीं,छूते शिव - विश्वास।।
काँवड़ - यात्रा से सभी,धुल जाते हैं पाप।
मनोकामना पूर्ण हो,जान लीजिए आप।।
काँवड़ -यात्रा हो रही, श्रावण का शुभ मास।
पहले चौदह दिन करें, तप से करते आस।।
काँवड़ -यात्रा में कभी,करते नशा न माँस।
तामस का परित्याग हो,शुद्ध चले तव साँस।।
काँवड़ - यात्रा में नहीं, करते भू-स्पर्श।
काँवड़ कंधे पर रहे,शिव का करे विमर्श।।
बम -बम भोले बोलिए, काँवड़ कंधे धार।
पावन गंगाजल भरे,होगा तब उद्धार।।
●शुभमस्तु !
12.07.2023◆3.00प०मा०
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