बुधवार, 5 जुलाई 2023

सावन की झड़ी ● [ दोहा ]

 290/2023

        

[सावन,बादल,मेघ,झड़ी,चौमास]

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● ©शब्दकार

● डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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          ●  सब में एक ●

प्रिय! सावन के मेघ-से, झर-झर बरसो धार।

प्यासी  धरती - सी पड़ी,जल का दो उपहार।।

सावन की प्रियता बड़ी,बढ़ी विरह की आग।

कन्त नहीं आए  अभी, जाग रहा   अनुराग।।


काले बादल  व्योम में, परिरंभण   में   लीन।

शरमाती-सी  मौन है,  धरा पिपासित    मीन।।

मेहो!  मेहो!! कर  रहे, सुन बादल की  रोर।

वन-बागों  में   नाचते,हरित नील   रँग   मोर।।


जाते  हो  सर्वत्र   तुम,सुन  लो मेघ   पुकार।

विरहानल  में मैं  जलूँ, कन्त बुलाओ   द्वार।।

उमड़े  गजदल  व्योम में,ज्यों काले  या  सेत।

जलवाहक  ये मेघ सब, पावस ऋतु  के हेत।।


टपके   टप-टप  रात  में, छप्पर - छानी  मीत।

झड़ी लगी  सावन कहे,गा ले  कजरी   गीत।।

पड़ी झड़ी ज्यों देह पर, विरहानल क्यों तेज।

साजन भी आए नहीं,पतिया तो  लिख भेज।।


सावन, भादों, क्वार  के,संग बना   चौमास।

कार्तिक गंग-नहान में,विष्णु-भक्ति का वास।।

देव-शयन  एकादशी, लगे 'शुभम्'  चौमास।

शोभन  शुचि  परिवेश है,हरि निद्रा  आवास।।


           ● एक में सब ●

सावन की पावन झड़ी,

                          बरसे जल चौमास।

मेघ  घने  बादल झुके,

                        दिखता नहीं उजास।।


●शुभमस्तु !

04.05.2023◆11.30प०मा०

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