299/2023
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●© शब्दकार
● डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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लिए हाथ में
लौह-हथौड़ा
तोड़ रही पाषाण।
नन्हे शिशु को
दूध पिलाती
अस्त -व्यस्त तन चीर।
है एकाग्र
ध्यान में स्थित
भरी कलेजे पीर।।
कैसे भी तो
चाहे नारी
बच जाएँ दो प्राण।
आँचल में गह
अपने सुत को
मात्र काम पर गौर।
केश बिखरते
खुले हवा में
दुर्दिन का है दौर।।
मात्र -मात्र
उद्देश्य कर्मरत
करना ही है त्राण।
स्वेद बहाना
चोरी है क्या
दो हाथों से आज।
सो पाती है
अपनी कथरी
श्रमिका को है नाज।।
आती मीठी-
मीठी निंदिया
नहीं कभी म्रियमाण।
अपने श्रम की
दो रोटी में
सुख का स्वर्ग -निवास।
रखे हाथ पर
हाथ न बैठी
अपने बल की आस।।
लोगों का क्या
कीच उछालें
बकते रहते भाण।
●शुभमस्तु !
11.07.2023◆7.00आ०मा०
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