शुक्रवार, 28 जुलाई 2023

अनगढ़ ● [अतुकान्तिका ]

 327/2023

          

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● ©शब्दकार 

● डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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अनगढ़ माटी का

पुतला था

तू मानव,

गढ़ -गढ़

सुघड़ बनाया 

उस कर्ता ने,

मान सदा आभार।


क्षण -क्षण

तुझे सँवारा,

कण-कण 

नया दिया है,

उस प्रभु का

उपकार मान,

जिसके बलबूते पर

जीवन है उपहार।


तेरा कुछ भी नहीं

दिया वही सब,

धरा, तेज ,आकाश,

अनल, नीर ,सद वायु 

सदा ही देते हैं आकार,

अलग हैं जिनके

रूपाकार।


अंशी का 

तू अंश तुच्छतम,

कैसी तेरी अकड़ 

भरित अहं,

स्वयं बनाता

भेद भीति भ्रम,

हो जाता पल क्षार,

अरे धरा के भार।


सुप्त मनुजता

करे 'शुभम्' क्यों,

 मूढ़ जाग जा

अब तो जड़ता त्याग

सदा की,

वरना सब बेकार।


●शुभमस्तु !


28.07.2023◆6.30आ०मा०

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