मंगलवार, 18 जुलाई 2023

सुमति विराजे गेह ● [ गीतिका ]

 311/2023

   

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●©शब्दकार

● डॉ. भगवत स्वरूप  'शुभम्'

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नाम न तम का शेष, होता जहाँ  प्रभात।

गिरें  गर्त  में मेष, आ जाती जब   रात।।


बोलें  वहीं  उलूक,  मिलता नहीं   प्रकाश,

हंस  रहें  सब  मूक, बहे  ज्ञान की   वात।


सदा  पतन  का  हेत,नर-नारी ही   सदा,

वे  घर   सूखे   रेत,जहाँ चरित का  पात।


उठता नहीं समाज, शिक्षा-ज्योति-अभाव,

कभी-कभी  ही  तात,उगता है  जलजात।


नहीं  जनक  का मान,करती संतति   लेश,

जीवन   नर्क   समान ,सदा भोगती   घात।


मनुज - देह  ज्यों  ढोर,जहाँ न सेवा - भाव,

होता  वहाँ न भोर,  सचल मृत्तिका   गात।


'शुभम्' महकते  फूल,सुमति विराजे  गेह,

रहे न देह - दुकूल,  पड़े  पिता पर   लात।


●शुभमस्तु !


17.07.2023◆5.15 आरोहणम् मार्तण्डस्य।

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