311/2023
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●©शब्दकार
● डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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नाम न तम का शेष, होता जहाँ प्रभात।
गिरें गर्त में मेष, आ जाती जब रात।।
बोलें वहीं उलूक, मिलता नहीं प्रकाश,
हंस रहें सब मूक, बहे ज्ञान की वात।
सदा पतन का हेत,नर-नारी ही सदा,
वे घर सूखे रेत,जहाँ चरित का पात।
उठता नहीं समाज, शिक्षा-ज्योति-अभाव,
कभी-कभी ही तात,उगता है जलजात।
नहीं जनक का मान,करती संतति लेश,
जीवन नर्क समान ,सदा भोगती घात।
मनुज - देह ज्यों ढोर,जहाँ न सेवा - भाव,
होता वहाँ न भोर, सचल मृत्तिका गात।
'शुभम्' महकते फूल,सुमति विराजे गेह,
रहे न देह - दुकूल, पड़े पिता पर लात।
●शुभमस्तु !
17.07.2023◆5.15 आरोहणम् मार्तण्डस्य।
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