314/2023
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● © शब्दकार
● डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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आया सावन
झूम - झूम कर
खुशियों की बरसात।
खोले आँचल
धरा पड़ी है
तन में सुलगी आग।
कौन दिशा से
आए जलधर
खुल जाएँ तब भाग।।
सूरज ने नित
तपा -तपा कर
खाक किया है गात।
श्यामल बाँहें
श्यामल ही तन
लिया बाँध भुजबंध।
देखा लेश न
न ही रात -दिन
बना हुआ घन अंध।।
बेबश धरती
किया समर्पण
हुई साँझ से प्रात।
उगते अंकुर
हरे -हरे नव
तृप्त धरिणि का कण -कण।
मन ही मन में
मुदित मेदिनी
हुई उल्लसित क्षण-क्षण।।
गरज -गरज कर
चकाचौंध कर
खिला सुमन जलजात।
●शुभमस्तु !
19.07.2023◆12.45 पतनम मार्तण्डस्य।
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