शनिवार, 22 जुलाई 2023

प्रश्न? ● [अतुकान्तिका]

 315/2023

             

●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●

 ●© शब्दकार

● डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●

प्रश्नों का जंगल

वे मुँहबाए - से

खड़े हुए,

किसी अदृष्ट शक्ति की

प्रतीक्षा में पड़े हुए!

किंतु सब निरर्थक

सब कुछ निर्रथक।


आस्तीन के साँप

देशद्रोही

इश्क के मोही,

छद्म 'सीमाओं' में

बँधे हुए,

उबारने वाले शिकंजे

प्रश्न-शूलों में

उलझे हुए।


बाड़ ही

खेत को खाये जाए,

है कोई उपाय?

 नहीं चलेगा काम

चिल्लाने से हाय! हाय!!

और उधर तुम

गाते रहे 

गीता, गंगा, गायत्री, गाय!


नारी का मोह-जाल

आज पूरा देश ही बेहाल

 भविष्य पर उठते सवाल,

कहाँ भारत 

पाक या नैपाल,

'विनायक' और 'गणेश' भी

नहीं जान पाए कुचाल,

'वे' पात - पात

 तुम भटक रहे डाल -डाल!

देश में चल रहा 'भूचाल'!


ढाक के तीन पात,

नौ दिन चले अढ़ाई कोस,

एक ही 'छली' 'मछली'

काफ़ी है तालाब में 

बदबू फैलाने के लिए,

मछली के जाल में

कितने -कितने जा फँसे!


विडम्बना है देश की

'शूलों'  के 

बदले हुए वेश की,

तुलसी पूजा से

साड़ी सिंदूर में

 गन्धित केश की,

मचते हुए बवाल की,

प्रश्न अभी ज्यों के त्यों

बने हुए रहस्य!

ठगे - से खड़े हैं!


● शुभमस्तु !


21.07.2023◆6.00आ०मा०

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...