295/2023
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●© शब्दकार
● डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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-1-
मानव की दृढ़ रीढ़ है,शिक्षा समझें मीत।
हार नहीं होती कभी,मिलती है नित जीत।।
मिलती है नित जीत,नहीं जो लेता शिक्षा।
मरता भूखे पेट , माँगनी पड़ती भिक्षा।।
'शुभम्' यही दें सीख,नहीं बनना यदि दानव।
बचपन का उपहार, बनें पढ़ शिक्षा मानव।।
-2-
बचपन नहीं गँवाइये,संतति का हे मित्र!
खेलों में खोना नहीं, शिक्षा ही है इत्र।।
शिक्षा ही है इत्र, महकता जीवन सारा।
मिले सदा धन मान, बीतता जीवन प्यारा।।
'शुभम्' गए दिन बीत,आयु है तेरी पचपन।
चिड़ी चुग गई खेत,गँवाया संतति - बचपन।।
-3-
मानव- जीवन के लिए,शिक्षा अमृत - तुल्य।
रहती आजीवन सदा , प्रगति-पंथ में बल्य।।
प्रगति - पंथ में बल्य,खेलता बाल खिलौना।
सँभला एक न बार,खेल हो पूर्ण घिनौना।।
'शुभम्'न करता बाट, समय बनता नर दानव।
घड़ी न चले विलोम, बनाती शिक्षा मानव।।
-4-
देही मानव की धरी,बना रहा खग , ढोर।
कूकर, शूकर, मेष-सा, काग, टिटहरी, मोर।
काग, टिटहरी,मोर,गधा घोड़े - सा खाया।
शिक्षा का क्या काम,वृथा नर गात घुमाया।
'शुभम्' सदा भटकाव,शेर, मृग, चीता, सेही।
चूहा, शशक, शृगाल, गँवाई मानव - देही।।
-5-
जाते विद्यालय नहीं, गीध , बाज, उल्लूक।
शिक्षा का क्या काम है, आजीवन रह मूक।।
आजीवन रह मूक,माँस जीवों का खाना।
जीवन नहीं विराम,उन्हें यह नित्य नसाना।।
'शुभम्' बहुत नर -नारि,समय को वृथा बिताते।
धरते मानुष - यौनि, श्वानवत वे मर जाते।।
●शुभमस्तु !
07.07.2023◆3.15प०मा०
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