308/2023
●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●
● ©शब्दकार
● डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●
जय - जय टमटानंद हमारे।
अरुण वसन तुम तन पर धारे।।
सब्जी से फल तुम बन छाए।
आम - खास ने गले लगाए।।
हरा मुकुट तव शुभ सिर सोहे।
जो देखे उसके मन मोहे।।
गोलमटोल रूप तुम धारी।
हुए वजन में अब तुम भारी।।
आरति करति तोरई माई।
मंडी में तव है प्रभुताई।
आलू बैंगन तुम्हें मनावें।
जो अपने घर वापस आवें।।
करें सेव तुम्हरी सेवकाई।
हाथ जोड़ते लोग - लुगाई।।
टमटानंद मना पखवारा।
धारण मौन किया अति भारा।।
पेंदी बिना रूप - रँग भोला।
ऊपर नीचे से तुम गोला।।
उच्चासन तुमने निज कीन्हा।
अब तक पद हमने कब चीन्हा।।
सब्जी के घर तुम जन्माये।
फलघर शोभा तुम्हीं बढ़ाये।।
तुम्हें देख सब्जी जल जाए।
क्यों तुम अस उच्चासन पाए।।
बैंगन गोभी घिया करेला।
ठेले पर इतराता केला।।
सेवों के सँग सेवा पाते।
आलू देख तुम्हें ललचाते।।
साधु वेश धर तुम हो छाए।
मुँह में पानी भर - भर आए।।
फ्रिज़ को छोड़ तिजोरी पाई।
अनन्नास दे रहे बधाई।।
तुम्हें किसी ने अगर सताया।
अब तक तुमने नहीं बताया।।
सन्यासी का वेश बनाया।
हर ग्रहणी के मन को भाया।।
लॉकर में रखती हैं सासें।
बहू माँगतीं सविनय माँ से।।
तब सासू जी खोल तिजोरी।
देतीं छोटा खण्ड न भोरी।।
अब सलाद में तुम कब आते।
तुम्हें देख संतरे डराते।।
ऐसा पद सबको दे धाता।
धन्य तुम्हारी टमटा माता।।
आरति 'शुभम्' तुम्हारी गाए।
जो पूजे उच्चासन पाए।।
टमटा जी के दर्शन पाता।
धन्य - धन्य नर वह हो जाता।।
●शुभमस्तु !
14.07.2023◆3.45 आ०मा०
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें