319/2023
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● ©शब्दकार
● डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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तड़ित तड़पती तड़-तड़,अंबर घटा-घटा।
मेघ-गर्जना गड़-गड़, छाई छैल छटा।।
शिवालयों के घण्टे ,बजते घनन - घनन,
भक्ति - भाव के झंडे,परिसर प्रमन पटा।
भर गंगाजल काँवड़, लाते भक्त सभी,
धरते हैं पग बढ़-बढ़, नमः शिवाय रटा।
युवा, किशोर, किशोरी,भीड़ हजारों की,
प्रौढ़, वृद्ध, नर, नारी, दर्शन हेतु डटा।
मनकामेश्वर - पूजा, करने आये भक्त,
शिव से और न दूजा,तन से गात सटा।
सोमवार सावन के,मनभावन दिन देख,
तन-मन कर पावन वे,उर अन्यत्र हटा।
'शुभम्' सनातन प्यारे, भोले भंडारी,
दानी अवढर न्यारे, खाते आक गटा।
●शुभमस्तु !
24.07.2023◆6.15 आरोहणं मार्तण्डस्य।
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