313/2023
●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●
●©शब्दकार
● डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●
सावन की महिमा बड़ी,प्रकृति में चहुँ ओर।
हरे-हरे अंकुर उगे, नाच रहे वन मोर।।
राखी रक्षासूत्र की ,लेकर भ्राता - धाम।
सावन में भगिनी चली,पावन भाव सकाम।।
सावन में झूले नहीं,कजरी गीत मल्हार।
वीरबहूटी खो गईं, बचा न पहला प्यार।।
सावन पावन मास है,समझें मीत सुजान।
खेत जोतने जा रहे,देखो कृषक महान।।
सावन की काली घटा, चपला चमके मीत।
हिय में विरहिन काँपती,तन थर-थर ज्यों शीत
सावन को प्रिय श्रावणी,शुभ हरियाली तीज।
नागपंचमी नेह की,उर में तनिक पसीज।।
सावन के सत्कार में, उमड़े मेघ हजार।
चमके चपला साथ में, देती है ललकार।।
सावन आया लौटकर, आया नहीं किसान।
बिना जुती धरती पड़ी,करे बीज का दान।।
सावन क्यों सूखे रहें, भीगें कैसे चीर।
जब तक प्रिय घर में नहीं,अँगना-हृदय अधीर।
सावन की सुषमा बढ़ी, हरियाली चहुँ ओर।
अम्बर में घन झूमते,दिखे न रवि की कोर।।
सावन सहज सुहावना, शुचिता सद्य सुरम्य।
सर-सर शीतल सलिल सर,शुभदा कृपा अनन्य
●शुभमस्तु !
19.07.2023◆7.15आ०मा०
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें