293/2023
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●© शब्दकार
● डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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सम्पूर्ण जीवन बँटा
अंकों के नाम,
बताते हुए
मानव का अभिज्ञान,
रहा नहीं
अपना कुछ नाम,
जीवन सर्वस्व की
अंकों से पहचान।
जन्म का अंक,
सेवारम्भ का अंक,
विवाह का अंक,
संतति के जन्म का अंक,
आधार अंक,
पैन का अंक,
बैंक - खाता का अंक,
ए टी एम अंक,
पासवर्ड अंक,
मोबाइल अंक,
ई - मेल अंक,
निवास स्थल अंक,
और अंत में बस
अवसान अंक।
सब कुछ
अंकों में समाया,
मनुष्य क्या है
बस अंकों की छाया,
जन्माती जाया
और अंत में माटी में
मिल जाती हर काया!
कैसी विचित्र माया?
सबके अंक
पृथक् - पृथक् ,
कहीं कोई नहीं
एक भी समानता,
आदमी , आदमी को
अंकों से ही जानता,
फिर भी अपनी
ऐंठ में किसी को
नहीं मानता!
नौ अंकों के
अंक - पर्यंक
पर पसरा हुआ तू
कुछ और भी
कर्म कर ले,
'शुभम्' प्रति घड़ी के लिए
स्वधर्म का मर्म
उर के अंक में
भर ले,
वरना एक दिन तो
ये अंक भी
विलीनता के शून्य में
विलीन हो जाएँगे,
न रहेंगे अंक
औऱ न नाम के
चिह्न रह पाएँगे।
●शुभमस्तु !
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