गुरुवार, 13 जुलाई 2023

उल्लास ● [ सोरठा ]

 305/2023

              

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● ©शब्दकार 

● डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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नहीं  एक  ही  वास,समय सदा  गतिशील है।

आता  नव उल्लास, घूरे के भी    दिन  फिरें।।

करिए भर उल्लास, छोटा-बड़ा   न   सोचिए।

निज मन का विश्वास,पल भर को खोना नहीं।।


अपना  कोई   काम, करता जो  उल्लास  से।

मिलता फल अभिराम,सदा सफलता ही मिले।

मरा हृदय-उल्लास,जहाँ निराशा  आ   गई।

करता जग उपहास,कदम नहीं बढ़ते कभी।।


खिलते सुख के फूल,जिस घर में उल्लास हो।

महके मलयज धूल,हिलमिल कर रहते सभी।

जिस  घर का  परिवेश,भरा हुआ उल्लास से।

रहें  न  संकट  लेश , बाधाएँ मिटतीं    सभी।।


भरता  मान सुवास,अपने गुरुजन का सदा।

भरा रहे उल्लास, असफल क्या  होना  कदा।।

घर भर में उल्लास,उत्सव शादी   ब्याह  में।

पल -पल बढ़ती आस, नहीं थकाता देह को।।


तन -मन में  उल्लास, मान- प्रतिष्ठा  से  बढ़े।

आता है सुख  रास, किसके जीवन को नहीं।।

कुत्ते   भी   निज  पेट,भर लेते उल्लास    से।

आजीवन  रह  चेट ,हर्षित मन  पाता  नहीं।।


जिसमें अपना वास,करें 'शुभम् ' उस देश को।

भर मन में उल्लास,दिन-दिन हितकर काज।।


●शुभमस्तु !


13.07.2023◆12.45प०मा०

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