305/2023
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● ©शब्दकार
● डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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नहीं एक ही वास,समय सदा गतिशील है।
आता नव उल्लास, घूरे के भी दिन फिरें।।
करिए भर उल्लास, छोटा-बड़ा न सोचिए।
निज मन का विश्वास,पल भर को खोना नहीं।।
अपना कोई काम, करता जो उल्लास से।
मिलता फल अभिराम,सदा सफलता ही मिले।
मरा हृदय-उल्लास,जहाँ निराशा आ गई।
करता जग उपहास,कदम नहीं बढ़ते कभी।।
खिलते सुख के फूल,जिस घर में उल्लास हो।
महके मलयज धूल,हिलमिल कर रहते सभी।
जिस घर का परिवेश,भरा हुआ उल्लास से।
रहें न संकट लेश , बाधाएँ मिटतीं सभी।।
भरता मान सुवास,अपने गुरुजन का सदा।
भरा रहे उल्लास, असफल क्या होना कदा।।
घर भर में उल्लास,उत्सव शादी ब्याह में।
पल -पल बढ़ती आस, नहीं थकाता देह को।।
तन -मन में उल्लास, मान- प्रतिष्ठा से बढ़े।
आता है सुख रास, किसके जीवन को नहीं।।
कुत्ते भी निज पेट,भर लेते उल्लास से।
आजीवन रह चेट ,हर्षित मन पाता नहीं।।
जिसमें अपना वास,करें 'शुभम् ' उस देश को।
भर मन में उल्लास,दिन-दिन हितकर काज।।
●शुभमस्तु !
13.07.2023◆12.45प०मा०
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