शनिवार, 1 जुलाई 2023

काग हर ओर यहाँ ● [ गीतिका ]

 285/2023

  

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● ©शब्दकार

● डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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बदलें  अपनी चाल,काग हर ओर   यहाँ।

बनते  सभी  मराल,करें किल्लोर  यहाँ।।


बदल   न   पाया  पंख, रंग भी काला  है,

दिखता काला शंख,छिपा गति चोर यहाँ।


धरे शीश   पर  जूट ,हुई पहचान    नहीं,

सबको  भारी छूट,नहीं लिंग छोर    यहाँ।


जन  शतरंजी  गोट,   लुप्त संज्ञान  सभी,

नहीं मात्र तृण ओट,मनुज बरजोर   यहाँ।


सजा   देह  पर   ढोंग,नारियों को   ठगते,

उपदेशक  जी  पोंग,  न होगी भोर   यहाँ।


सही   कौन  है  हंस,चाल कुछ  वैसी ही,

कौन कृष्ण  है  कंस,शब्दग्रह शोर  यहाँ।


'शुभम्' रँगी  है  खाल, पंख की बात नहीं,

नकली   धरते  बाल,जाँच लें कोर   यहाँ।


●शुभमस्तु !


01.07.2023◆3.00प०मा०

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