बुधवार, 5 जुलाई 2023

चतुराई ● [ दोहा ]

 291/2023

             

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●© शब्दकार 

● डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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चतुराई   उत्तम  सदा,हितकारी भी  मीत।

संकट में  वह काम दे,गाता मधु   संगीत।।

मात- पिता को मत दिखा, चतुराई के खेल।

समझे   इच्छादेश  तू, रहे  सदा   सह  मेल।।


काम सदा  आती नहीं, अति चतुराई  मीत।

निज गुरुजन के  सामने,गा न अहं के  गीत।।

चतुराई से मत करें, धोखा जन   के   साथ।

खुल जाती है पोल जब, झुकता  तेरा माथ।।


चपल चौंध  चुँधिया रही, चंचल  तेरे   नेत्र।

चतुराई   ऐसी  बुरी, करे  पार निज    क्षेत्र।।

चतुराई  से  जीत  पा, कछुए ने   द्रुत  वेग।

शशक सो गया छाँव में,धरा रह गया तेग।।


चतुराई  उत्तम  भली,अग्रिम वही   किसान।

समय  देख  खेती करे, उसे नहीं व्यवधान।।

चतुराई  से  शिष्यगण, याद करें  जो  पाठ।

अंक  उन्हें  मिलते  सदा, सौ में नब्बे  साठ।।


चतुराई   से   जीतती,  सद गृहणी  परिवार।

ध्यान रखे सबका सदा,प्रियतम को दे प्यार।।

चतुराई  है  बुद्धि  का, अद्भुत अनुपम  खेल।

सूझबूझ   से  नेह   से, रखती है   धी   मेल।।


चतुराई  से  नाव   को,  करता केवट पार।

भँवरों  से  रक्षा  करे, क्यों डूबे मँझधार।।


●शुभमस्तु !


05.07.2023◆7.30 आ०मा०

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