307/2023
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●©शब्दकार
● डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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रिमझिम बूँदें
गरम पकौड़ी,
चाय सुड़कते
थोड़ी - थोड़ी,
आई वर्षा रानी।
तन भीगे,
मन रीझे,
देखी
प्रकृति हरी - भरी ,
कुहू - कुहू बोले
पिक श्यामल
मोर नाचते आँगन।
छम - छम पग में
पायल बजती,
हिलकोरे भरे
नथनिया,
आ जा प्रीतम
झूला झूलें,
पींग बढ़ा री
धनिया।
कजरी और
मल्हारें भूली,
क्या झूला अमराई!
अंग-अंग में
तड़के चपला,
लेती जब
अँगड़ाई,
बुँदियों की छवि छाई।
'शुभम्' बीज
धरती में उगते,
अंकुर हरित हजार,
कलरव करती
गौरैया पिक
लिपट बेल
द्रुम प्यार,
आई नवल बहार।
● शुभमस्तु !
13.07.2023◆ 7.30 प०मा०
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