मंगलवार, 25 जुलाई 2023

यदि न कहीं मेक 'प होता! ● [ गीत ]

 316/2023

  

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● ©शब्दकार

● डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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बदला होता

दृश्य घरों का

यदि न कहीं मेक 'प होता।


दीवारों पर

जैसे कोई

चूना  पोत  रही नारी।

असली रूपसि

छिपी क्रीम तल

रदपुट रक्त बहा भारी।।


सजा पीठ पर

जीन सुसज्जित

ठुमक-ठुमक चलता खोता।


मुखड़ा अपना

जा सुधार गृह

नारी नहीं कभी जाती।

खाली होती

जेब न पति की

लाली रूज़ नहीं लाती।।


मँहगाई की

मार न पड़ती

छिपा अश्रु साजन रोता।


ठगने को ही

नर ने नारी

आभूषण  खोजे  सारे।

'लगती हो तुम

बड़ी सोहणी'

मोहक काम-बाण मारे।।


ठगी गई

वह भोली बाला

पथ में शूल पुरुष बोता।


'चंद्रमुखी तुम

गजगामिनी तुम

कमर ततैया-सी प्यारी।'

'अवगुंठन में

पाटल - कलिका

देख बुद्धि मेरी मारी।।'


'ऊभ -चूभ मन

करता मेरा

खाता मैं निशि -दिन गोता।


स्वर्ण -शृंखला 

में मैंने ही

बाँधा  है  बाले  तुमको।

वसन मखमली

 में नारी - तन

है लपेटता नर बम को।।


'शुभम्' स्वार्थ में

लिपटे दोनों

समझे गात सुखद-सोता।


●शुभमस्तु !


23.07.2023◆3.30प०मा०

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