328/2023
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●समांत : ऊल.
●पदांत : नहीं है.
●मात्राभार :11+13=24.
●मात्रा पतन:शून्य.
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● ©शब्दकार
● डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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चलें सँभलकर चाल,समय अनुकूल नहीं है।
कागा बना मराल, महकता फूल नहीं है।।
परपीड़क हथियार, हाथ में चमकें नर के,
वाणी बनी कुठार, हृदय में ऊल नहीं है।
नहीं देशहित भाव, तिजोरी भरते नेता,
घावों का ही चाव,संत सम तूल नहीं है।
कहाँ सुरभिमय भोर, विश्व में हाहाकारी,
दानव-सा बरजोर, शांति आमूल नहीं है।
छाया हिंसाचार , मरी नैतिकता देखो,
बढ़ता नित व्यभिचार,धर्म की धूल नहीं है।
पाटल वेला नाम, किताबों में मिलते हैं,
सुमन हुए बेकाम, सुकोमल शूल नहीं है।
'शुभं'व्यथित मन नित्य,देख सुन हाल देश का,
कहाँ गया जन-सत्य, दैव की भूल नहीं है।
●शुभमस्तु !
31.07.2023◆7.45आ०मा०
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