289/2023
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●© शब्दकार
● डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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घिर - घिर आओ बदरा कारे।
बुझा प्यास धरती की प्यारे।।
तनिक उमस अब सही न जाए।
साँस घुटे तन स्वेद बहाए।।
दिन में दिखते हैं अब तारे।
घिर- घिर आओ बदरा कारे।।
मेघा भिगो चूनरी मेरी।
करो न बरसाने में देरी।।
घुल-मिल बरसो रहो न न्यारे।
घिर -घिर आओ बदरा कारे।।
जीव-जंतु पशु-पक्षी प्यासे।
सूरज ने फेंके हैं पासे।।
किरण - जाल के फंदे न्यारे।
घिर -घिर आओ बदरा कारे।।
बरसो हरी घास उपजाओ।
हरियाली धरती पर लाओ।।
क्यों न तपन से शीघ्र उबारे!
घिर -घिर आओ बदरा कारे।।
'शुभम्' सुनो प्रार्थना हमारी।
तुम करुणानिधि के अवतारी।।
भर - भर नीर धरा बरसा रे।
घिर -घिर आओ बदरा कारे।।
● शुभमस्तु !
04.07.2023◆4.15प.मा.
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