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समांत: आड़।
पदांत: के नीचे।
मात्राभार :16.
मात्रा पतन:शून्य।
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✍️ शब्दकार ©
🪴 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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करभ गया पहाड़ के नीचे।
खीझा वह दहाड़ के नीचे।।
अपने से ऊँचा जब पाया।
छिपता त्वरित आड़ के नीचे।
नहीं मिली बरगद की छाया।
पहुँचा विटप ताड़ के नीचे।।
इतराया आजादी पाकर।
गीदड़ गया झाड़ के नीचे।।
लड़-भिड़ कर मित्रों से आता,
छिपता सुत किवाड़ के नीचे।
शेर दहाड़ें भरता ऊपर,
गया न शल्य - बाड़ के नीचे।
'शुभम्' कर्म ऐसे नित करना।
जाए क्यों उजाड़ के नीचे!!
🪴 शुभमस्तु !
१५.०८.२०२२◆६.००आरोहणम् मार्तण्डस्य।
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