सोमवार, 1 अगस्त 2022

नीर भर लाए जलवाह ⛈️ [गीतिका]

 309/2022


 

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नीर  को  भर लाए  जलवाह।

खेत को  हैं धाए     हलवाह।।


नहीं  है  शेष  तपन  का नाम,

गगन  में  बगुले  छाए   वाह।।


मगन  हो नाच रहे खग - वृंद,

कीट जी भर-भर खाए चाह।।


खेत, वन, बाग, बरसते   मेघ,

नदी की कलकल भाए लाह।


छिपा झुरमुट में कोकिल एक,

कुहू की  ध्वनि में  गाये गाह।।


नहीं ढम- ढम बाजों का शोर,

हो  रहे  नहीं  न  आए ब्याह।।


'शुभम्' ऋतुरानी  वर्षा   नेक,

मिटाती   ताप  बिछाए दाह।।


लाह=चमक।

गाह=गाथा।


🪴शुभमस्तु!


०१.०८.२०२२◆०७.४५आरोहणम् मार्तण्डस्य

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