322/2022
■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■
✍️ शब्दकार ©
🇮🇳 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■
-1-
महान देश के सभी, महान देशवासियो।
सु-काज में रहो लगे,बनो न दास दासियो।।
सुजान आन-बान से,सुदेश में रहो जियो।
सुधा सुबोल तोल के,पिला जिला सदा पियो
-2-
न रंग भेद ठीक है, न वर्ण भेद नीक है।
अखंड देश हिंद है,सुवर्ण -सा अतीत है।।
न भूल मान देश का,न जी सदंभ मीत है।
स्वतंत्र देश की ध्वजा,त्रिरंग नित पुनीत है।।
-3-
सदा सुसावधान हो,अराति ताक में खड़ा।
क्षमा नहीं करें उसे,भले न जो पगों पड़ा।।
विषाक्त नाग घात में,सु-बाड़ बंध में अड़ा।
न लातखोर मानता ,न टूट जाय थोबड़ा।।
-4-
लगे रहो सु-काज में,जियो सदा स्वदेश को।
स्वभूमि अन्न नीर को, न भूलना सुवेश को।।
स्वतंत्रता पुकारती,मिटा अमीत क्लेश को।
सु-बोल बोल हिंदवी,जपो उमा महेश को।।
-5-
कुराजनीति दंभ की,न देश को बचा सके।
अनीति ऊँच- नीच से,अमीत दाह से तके।।
भरे अनेक दोमुँहे, विषाक्त बोल बोल के।
नहीं करें उसे क्षमा, रहे न नेह घोल के।।
🪴 शुभमस्तु !
१३.०८.२०२२◆११.३० आरोहणम् मार्तण्डस्य।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें