रविवार, 14 अगस्त 2022

त्रिरंग नित पुनीत है!🪷🇮🇳 [छंद :पञ्चचामर ]

 322/2022


■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■

✍️ शब्दकार ©

🇮🇳 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■

                         -1-

महान   देश  के  सभी, महान देशवासियो।

सु-काज में रहो लगे,बनो  न दास दासियो।।

सुजान  आन-बान  से,सुदेश में रहो  जियो।

सुधा सुबोल तोल के,पिला जिला सदा पियो


                         -2-

न रंग  भेद   ठीक  है, न वर्ण भेद  नीक  है।

अखंड  देश हिंद है,सुवर्ण -सा अतीत   है।।

न  भूल मान देश  का,न  जी सदंभ  मीत है।

स्वतंत्र देश की ध्वजा,त्रिरंग नित पुनीत  है।।


                         -3-

सदा  सुसावधान  हो,अराति ताक में  खड़ा।

क्षमा  नहीं करें उसे,भले न जो  पगों  पड़ा।।

विषाक्त नाग घात में,सु-बाड़ बंध  में  अड़ा।

न लातखोर  मानता ,न  टूट जाय  थोबड़ा।।


                         -4-

लगे रहो सु-काज में,जियो सदा  स्वदेश को।

स्वभूमि अन्न नीर  को, न भूलना सुवेश को।।

स्वतंत्रता  पुकारती,मिटा अमीत  क्लेश को।

सु-बोल बोल हिंदवी,जपो उमा  महेश  को।।


                         -5-

कुराजनीति  दंभ की,न देश को  बचा  सके।

अनीति ऊँच- नीच से,अमीत दाह से तके।।

भरे  अनेक  दोमुँहे, विषाक्त बोल   बोल  के।

नहीं  करें उसे  क्षमा, रहे न नेह  घोल   के।।


🪴 शुभमस्तु !


१३.०८.२०२२◆११.३० आरोहणम् मार्तण्डस्य।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...