312/2022
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✍️ शब्दकार ©
🌴 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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बरसती ही रहीं रातें।
पनारे - सी बहीं रातें।।
नहीं चंदा नहीं सूरज,
कहानी - सी कहीं रातें।
गया सावन न तुम आए,
लपट में हैं दहीं रातें।
नहीं पहले रहे वे दिन,
न पहले - सी कहीं रातें।
नहीं लौटीं वही घड़ियाँ,
न आईं बतकहीं रातें।
जगाती थीं हमें हर पल,
नहीं जाती सहीं रातें।
'शुभम्' हैं मौन वे लेकिन,
रही हैं सब जहीं रातें।
🪴शूभमस्तु !
०३.०८.२०२२◆ १२.३० पतनम मार्तण्डस्य।
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