शुक्रवार, 5 अगस्त 2022

ग़ज़ल 🌴

 312/2022    

        

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✍️ शब्दकार ©

🌴 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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बरसती  ही     रहीं      रातें।

पनारे -  सी      बहीं    रातें।।


 नहीं   चंदा     नहीं     सूरज,

कहानी  -   सी  कहीं    रातें।


गया  सावन  न   तुम   आए,

लपट  में   हैं     दहीं     रातें।


नहीं  पहले   रहे     वे   दिन,

न पहले  -  सी   कहीं   रातें।


नहीं  लौटीं   वही      घड़ियाँ,

न  आईं     बतकहीं       रातें।


जगाती    थीं   हमें   हर पल,

नहीं    जाती    सहीं     रातें।


'शुभम्'  हैं  मौन   वे  लेकिन,

रही  हैं    सब    जहीं    रातें।


🪴शूभमस्तु !


०३.०८.२०२२◆ १२.३० पतनम  मार्तण्डस्य।


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