सोमवार, 22 अगस्त 2022

फूलों जैसा जीवन चाहा 🌹 [ गीत ]

 337/2022

 

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✍️ शब्दकार ©

🌹 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम् '

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फूलों    जैसा   जीवन   चाहा,

शूलों    को     दुत्कार   दिया।

सुमन-सेज को सहज बिछाया

नहीं  शूल  -  सत्कार किया।।


राहें   मनुज   वही  चुनता  है ,

चलना  हो   आसान     जहाँ।

जहाँ पड़े  हों कंकड़ - पत्थर,

जाना    चाहे      नहीं   वहाँ।।

जलता   रहा   पड़ौसी  से नर,

सँग परिजन   के प्यार जिया।

फूलों   जैसा    जीवन   चाहा,

शूलों   को   दुत्कार    दिया।।


सबका  भला  चाहता मन से,

दुःख   नहीं   आते  तव पास।

वचन  बोलता   मुख   से झूठे,

क्यों करता तब सुख की आस।।

सुख   के  सपने   देख रहा है,

दुख   का   ही  आधार लिया।

फूलों   जैसा    जीवन   चाहा,

शूलों    को   दुत्कार   दिया।।


आदर्शों   की    बड़ी   पोटली,

शीश      उठाए    फिरता   है।

सोचा  है  क्यों रोग - भार  से,

फिर भी मानव   घिरता  है??

दिया   एक   के   बदले   तूने,

सौ -  सौ   का उपहार  लिया।

फूलों    जैसा    जीवन  चाहा,

शूलों   को    दुत्कार   दिया।।


मुख में   राम   बगल  में छूरी,

तेरी      नित्य  -  कहानी    है।

हिंसक पशुओं से  भी घातक,

मानव   का   क्या  सानी है??

जो भी   तेरे   निकट आ गया,

उसको    तूने    मार     दिया!

फूलों   जैसा   जीवन   चाहा,

शूलों   को   दुत्कार    दिया।।


आडंबर  से  ठग   मानव  को,

ठगने      में     उलझाता    है।

लालच लोभ दिखा नारी धन-

से    मँझधार     डुबाता   है।।

'शुभम्'बचा जो मानव ठग से,

जीवन   का  उद्धार   किया।।

फूलों   जैसा    जीवन   चाहा,

शूलों   को    दुत्कार   दिया।।


🪴शुभमस्तु !


२२.०८.२०२२◆५.४५

पतनम मार्तण्डस्य।

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