बुधवार, 31 अगस्त 2022

गंगामय ऋषिकेश 🏞️ [ दोहा ]

 350/2022


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✍️ शब्दकार ©

🏞️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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पावन  गंगा-धार की,महिमा है   ऋषिकेश।

लक्ष्मण-झूला सोहता,निर्मित रम्य  स्वदेश।।


निर्मल  गंगाजल  बहे,दृश्य प्रकृति के रम्य।

तन-मन को शीतल करे,गंगा सदा  प्रणम्य।।


एक  ओर  गंगा  नदी,उधर हरित शुभ शृंग।

विद्युत  के  खंभे  सजे,देख हुए  हम  दंग।।


मंदिर    गंगा-घाट   पर,  होता शंख-निनाद।

सुनी कर्ण में भक्ति ध्वनि,विनशे हृदय विषाद


स्वच्छ  रखें  गंगा  नदी,अंकित बहु  निर्देश।

झगड़ा हँसी न कीजिए,नहीं घाट पर क्लेश।।


कृषि-सिंचन  करती  रही,नित गंगा की धार।

करते  जो  आराधना,  होते भव  से   पार।।


लक्ष्मण  झूले पर सजी,जाली खूब  सँभाल।

ध्वजा तिरंगा सेतु की, सबल सुरक्षा  ढाल।।


🪴 शुभमस्तु !


३०.०८.२०२२◆९.४५ आरोहणम् मार्तण्डस्य।

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