शुक्रवार, 12 अगस्त 2022

गीत नहीं है एकता 🇮🇳 [ दोहा ]

 318/2022

 

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✍️ शब्दकार ©

🇮🇳 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम् 

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एक  बढ़ाए  एक  को, पकड़ नेह  से  हाथ।

देश बढ़े आगे सदा,जन -जन का हो साथ।।

बड़ी - बड़ी  ऊँचाइयाँ, चढ़ सकते हम  वीर।

साथ सँभल कर पा सकें, उच्च शृंग को धीर।


ऊपर चढ़ने के लिए,क्या दिन है  क्या रात।

धीर -वीर  थकते  नहीं,संध्या हो  या   प्रात।।

एक - एक   के मेल से, एकादश    निर्माण।

देशभक्त  रणबाँकुरे, करते  माँ   का  त्राण।।


गीत  नहीं है  एकता,जो  गाएँ दिन  - रात।

पहले  उर से  एक  हों,  तभी बनेगी बात।।

सीमा  पर  प्रहरी  खड़े,अपना सीना  तान।

करने को अरिदमन वे,करें प्राण का  दान।।


बैठे    दुश्मन   ताक   में, घात लगाए   तीन।

जागरूक    रणबाँकुरे,  मारेंगें नित    बीन।।

हिमगिरि पर फहरा रही,विजयध्वजा पुरजोर

वचन  तिरंगा बोलता,स्वर्णिम अपनी  भोर।।


चढ़ते  जाना   वीर  तुम,  बढ़ते  जाना  धीर।

मंजिल निश्चित ही मिले,खन खन हो शमशीर

दुश्मन   को  समझें नहीं,छोटा, करें न भूल।

वार  प्रथम करना नहीं,अपना यही   उसूल।।


'शुभम्'  एकता - मंत्र  है,करते  धारण धीर।

शत्रु  न   माने  बात तो, दें बाणों  से  चीर।।


🪴 शुभमस्तु !


०९.०८.२०२२◆९.४५ आरोहणम् मार्तण्डस्य।

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