सोमवार, 1 अगस्त 2022

नीर भर लाए जलवाह ⛈️ [सजल]

 308/2022

 

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समांत:आह।

पदांत:अपदान्त।

मात्राभार :16.

मात्रा पतन:शून्य।

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नीर  को  भर लाए  जलवाह।

खेत को  हैं धाए     हलवाह।।


नहीं  है  शेष  तपन  का नाम।

गगन  में  बगुले  छाए   वाह।।


मगन  हो नाच रहे खग - वृंद।

कीट जी भर-भर खाए चाह।।


खेत, वन, बाग, बरसते   मेघ।

नदी की कलकल भाए लाह।


छिपा झुरमुट में कोकिल एक।

कुहू की  ध्वनि में  गाये गाह।।


नहीं ढम- ढम बाजों का शोर।

हो  रहे  नहीं  न  आए ब्याह।।


'शुभम्' ऋतुरानी  वर्षा   नेक।

मिटाती   ताप  बिछाए दाह।।


लाह=चमक।

गाह=गाथा।


🪴शुभमस्तु!


०१.०८.२०२२◆०७.४५आरोहणम् मार्तण्डस्य।

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