308/2022
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समांत:आह।
पदांत:अपदान्त।
मात्राभार :16.
मात्रा पतन:शून्य।
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नीर को भर लाए जलवाह।
खेत को हैं धाए हलवाह।।
नहीं है शेष तपन का नाम।
गगन में बगुले छाए वाह।।
मगन हो नाच रहे खग - वृंद।
कीट जी भर-भर खाए चाह।।
खेत, वन, बाग, बरसते मेघ।
नदी की कलकल भाए लाह।
छिपा झुरमुट में कोकिल एक।
कुहू की ध्वनि में गाये गाह।।
नहीं ढम- ढम बाजों का शोर।
हो रहे नहीं न आए ब्याह।।
'शुभम्' ऋतुरानी वर्षा नेक।
मिटाती ताप बिछाए दाह।।
लाह=चमक।
गाह=गाथा।
🪴शुभमस्तु!
०१.०८.२०२२◆०७.४५आरोहणम् मार्तण्डस्य।
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