323/2022
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✍️ शब्दकार ©
🪸 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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-1-
विनीत भाव चाव ले,स्वदेश के लिए जियो।
बढ़े चलो!बढ़े चलो, सुवेश जो फटे सियो।।
न छोड़ शोध बोध को,निराश हो न वासियो।
बिगाड़ क्या सके अरे!अमीत मूढ़ वंशियो।।
-2-
सुराज आपके लिए, सुराज आपसे बने।
अनीति त्याग नीति से,स्वराज की ध्वजा तने
न द्वेष - छद्म साथ हो, न बैर - मेघ हों घने।
न कर्म हों अधर्म के,न पाप में रहें सने।।
-3-
जना नहीं सु-मात ने, न देश भक्त हो सके।
कुदृष्टि से सु-नारि को,कुपूत देख के तके।।
हुआ कु-भार देश में,लुभा रहा नहीं पके।
अराति नाग दोमुँहे, न हैं सु- मीत आपके।।
-4-
न भाव देश का भरा,न धार नेह की बहे।
यहीं पले, बढ़े ,मरे,न देश को निजी कहे।।
अमीत भाव काल -सा,सरोष देह में दहे।
सुकून,अन्न,नीर पी,अशांति तीक्ष्णता लहे।।
-5-
अपान-सा न जी यहाँ,स्वदेश भाव जो नहीं।
जवान ढोर हैं भले,सु-दुग्ध दे रहे कहीं।।
कृतघ्नता भरी अघी, अशेष नाग दोमुँही।
कुकर्म में प्रवीणता,सुकर्म में नहीं जहीं।।
🪴 शुभमस्तु !
१३.०८.२०२२◆४.००पतनम मार्तण्डस्य।
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