रविवार, 14 अगस्त 2022

वंचक को पंच 🪸 [छंद :पञ्चचामर ]

 323/2022


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✍️ शब्दकार ©

🪸 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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                         -1-

विनीत भाव  चाव ले,स्वदेश के लिए  जियो।

बढ़े  चलो!बढ़े  चलो, सुवेश जो फटे सियो।।

न  छोड़ शोध बोध को,निराश हो न वासियो।

बिगाड़  क्या सके अरे!अमीत मूढ़ वंशियो।।


                         -2-

सुराज  आपके   लिए, सुराज आपसे   बने।

अनीति त्याग नीति से,स्वराज की ध्वजा तने

न  द्वेष - छद्म साथ हो, न बैर - मेघ हों घने।

न  कर्म  हों  अधर्म  के,न पाप में  रहें  सने।।


                         -3-

जना नहीं  सु-मात  ने, न देश भक्त हो सके।

कुदृष्टि से सु-नारि को,कुपूत देख  के  तके।।

हुआ  कु-भार  देश में,लुभा रहा  नहीं  पके।

अराति नाग दोमुँहे, न हैं  सु- मीत  आपके।।


                         -4-

न  भाव देश  का भरा,न धार नेह  की बहे।

यहीं पले, बढ़े ,मरे,न देश को निजी  कहे।।

अमीत  भाव काल -सा,सरोष देह  में  दहे।

सुकून,अन्न,नीर पी,अशांति तीक्ष्णता लहे।।


                         -5-

अपान-सा न जी यहाँ,स्वदेश भाव जो नहीं।

जवान  ढोर  हैं  भले,सु-दुग्ध दे  रहे  कहीं।।

कृतघ्नता  भरी  अघी, अशेष नाग   दोमुँही।

कुकर्म  में  प्रवीणता,सुकर्म में नहीं   जहीं।।


🪴 शुभमस्तु !


१३.०८.२०२२◆४.००पतनम मार्तण्डस्य।

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