सोमवार, 29 अगस्त 2022

ग़ज़ल 🌴

 343/2022

         

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✍️ शब्दकार ©

🌴 डॉ. भगवत स्वरूप *शुभम्'

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जीवन वन है और नहीं कुछ।

घन सिंचन है और नहीं कुछ।


माली  एक  वही   है  सबका,

व्यर्थ जतन है और नहीं कुछ।


मानव   एक   इकाई   केवल,

नहीं  वतन है औऱ नहीं कुछ।


जिसको सच  माने   बैठा  तू,

एक सपन है और नहीं कुछ।


ठंडक  होती   भाड़ों  में  कब,

विकट तपन हैऔऱ नहीं कुछ।


मान   रहा  अपने  को  रब तू,

वहम-शरन है और नहीं कुछ।


'शुभम्'भुलाया मानव जीवन,

राम- चरन है और नहीं कुछ।


🪴शुभमस्तु !


२५.०८.२०२२◆११.४५ आरोहणम् मार्तण्डस्य।

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