बुधवार, 24 अगस्त 2022

फैशन बना तिरंगा 🇮🇳 [ गीत ]

 341/2022


■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■

✍️ शब्दकार ©

🇮🇳 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्

■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■

जान रहे  हैं  वे  सब झूठे,

फिर  भी  मत  दे  आते।


कहीं जाति का छोंक लगा है,

कहीं  वर्ण  का  छाता,

पाँच   साल   पूरे   होने   पर,

फिर मत को अजमाता,

होती   पुनः  ठगाई,

आ जाती   गरमाई,

बन उलूक  मदमाते।


नहीं   तुम्हारे  लिए  बने  वे,

अपनों के हित जीना,

बधिक चुगाता है ज्यों दाना,

वैसे  जीवन  छीना,

दाना फेंक  बुलाना,

चाँदी  से तुलवाना,

घर   अछूत   के  खाते।


निज विकास ही लक्ष्य एक है,

नाम देश का कहना,

नोटों की बोरियाँ सजीं घर,

भैया हों या  बहना,

जिसकी पूँछ उठाई,

हमने   मादा    पाई,

तनिक  नहीं   पछताते।


लोकतंत्र  का  उठा  तिरंगा,

कुछ भी कर  लो  भैया,

धूनी   रमा   छाँव   झंडे की,

पार  लगा   लो    नैया,

फैशन   बना   तिरंगा,

जपो गाय   या   गंगा,

कंचन  कामिनि   राते।


🪴शुभमस्तु !


२४.०८.२०२२◆ २.२० पतनम मार्तण्डस्य।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...