325/2022
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✍️ शब्दकार ©
🌻 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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लहराया मैं आसमान में,
मानव बहक गया।
मेरी छाया में सौगंधें,
खाकर करता वादे,
मुँह में राम बगल में छूरी,
नेक न रहे इरादे,
लोकतंत्र को गाली,
कंधे टाँग दुनाली,
आँगन महक गया।
छाँव तिरंगे की वह सोता,
देश समूचा कुनबा,
अंधे बाँट रहे रेवड़ियाँ,
ढूँढ़ रहा घर पुरबा,
पहन भक्त का चोला,
हर ओर देश में डोला,
दानव लहक गया।
गंगा, गाय, तिरंगा, जपता,
उल्लू सीधा करता,
परदे में गो- मांस चीरता,
नहीं राम से डरता,
कैसी यह आजादी,
तन आँखों में वादी,
आनन चहक गया।
🪴 शुभमस्तु !
१४.०८.२०२२◆५.००
पतनम मार्तण्डस्य।
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