345/2022
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✍️ शब्दकार ©
🇮🇳 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम् '
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चंदन -उपवन में लगी,दीमक पाकर पोल।
उजड़ रही मम देश की,भारत भू अनमोल।।
देशद्रोहियों को नहीं, करे क्षमा क्यों देश!
रहते हैं जो देश में, बदल -छद्म के वेश।।
नेता अभिनेता भले, या हो जनता आम।
नहीं हुआ जो देश का,उसका मोल छदाम।।
देशभक्ति के ढोंग में,रँगे वसन जो लोग।
चंदन - तरु के कीट हैं,बने देश का रोग।।
देते नहीं सुगंध जो, तो क्यों दें दुर्गंध!
भारत माँ के कोढ़ वे,हैं जो मति के अंध।।
कभी तिरंगे का नहीं, करना है अपमान।
प्रथम जान आचार को,बना रखें नित शान।।
काल अवधि संज्ञान ले ,फहराएँ ध्वज आप
खेल न समझें मूढ़जन,लगे देश का शाप।।
देशभक्ति होती नहीं, तो मानव क्या ढोर!
एक तराजू पर तुलें,नट, व्यभिचारी, चोर।।
मानव,शूकर या गधे,सभी- सभी से भिन्न।
मानव है तो मान रख,क्यों गर्दभ पशु खिन्न!!
मानव से ही देश है, नहीं गधों से नाम।
मानवता के वेश में, करता खोटे काम।।
कभी न भूलें देश के, वे बलिदानी नाम।
दे दी आजादी हमें, नाम हुए अभिराम।।
देश धर्म पर हो गए,जो सपूत बलिदान।
'शुभम्'नमन करता उन्हें, माना श्रेष्ठ महान।।
सेवा करते देश की, जिनका विशद चरित्र।
होता है उन्नत वही, नहीं देह का चित्र।।
कर्म साथ रहता सदा, जाता भी वह साथ।
कर्म नहीं अच्छे किए, पीट रहे निज माथ।।
कर्मवीर तो भानु है,फैले जगत प्रकाश।
बैठा मलता हाथ जो,बिखरे हों ज्यों ताश।।
🪴शुभमस्तु !
२६.०८.२०२२◆ ११.३० आरोहणम् मार्तण्डस्य।
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