शुक्रवार, 5 अगस्त 2022

ग़ज़ल 🌴

 314/2022


          

      SIS  SIS  SIS  SIS

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✍️ शब्दकार ©

🪷 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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यूँ  बनो   मीत   मिट्ठू   मिया तुम नहीं।

काम उसको जता  मत किया तुम नहीं।।


एक  से   एक   बढ़कर   यहाँ  शेर   हैं,

आज तक इक फटे  को सिया तुम नहीं।


पेट  अपना   सभी  श्वान   भी भर  रहे,

भूख से   मर  रहे    को  दिया तुम नहीं।


नाम   अख़बार   की  सुर्खियों में   छपा,

पेड़   का  नेक  जिम्मा लिया तुम  नहीं।


रोज़   घड़ियाल   के    अश्रु तुम  में  बहे,

नारि   नयनाज   आँसू  पिया तुम   नहीं।


रंग    में   जाति     के    या सियासत   रँगे,

बालकों  से  नहीं   सु -सिखिया  तुम  नहीं।


रौशनी    दे    रहा  इस  जहाँ को   'शुभम्',

जिंदगी   सूर    की  क्यों जिया  तुम नहीं।


🪴शुभमस्तु!


०५.०८.२०२२◆९.४५ आरोहणम् मार्तण्डस्य।

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