बुधवार, 24 अगस्त 2022

प्रबोध-पंचांगिका 🪸 [ कुंडलिया ]

 338/2022


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✍️ शब्दकार ©

🪸 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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                         -1-

कहता कर अपराध को,दोषी अपनी   बात।

अपने  सत संज्ञान  में,किया न मैंने   घात।।

किया  न  मैंने  घात, झूठ आरोप   लगाया।

पकड़ा मुझे  बलात्,वृथा ही यहाँ  फँसाया।।

'शुभम्' न कहता चोर,दंड मैं सच ही सहता।

मिलते पुष्ट प्रमाण,चोर फिर हाँ- हाँ कहता।।


                         -2-

मिलता न्यायागार  में, घातकार  को  दंड।

सहज नहीं स्वीकारता,कर दुष्कर्म  प्रचंड।।

कर  दुष्कर्म  प्रचंड, झूठ की रोटी    खाता।

रहे अहम  में चूर,नहीं  पल को  पछताता।।

'शुभम्'न कर सत्कर्म,पाप से तिलभर हिलता

भोग रहा परिवार,अघी को चैन न  मिलता।।


                           -3-

रोटी मिले हराम की,फिर क्यों करना काम।

बने  जौंक चूषण करें,घिसें न तन का चाम।।

घिसें न तन का चाम,चाट औरों  का  भेजा।

मौज  करे  परिवार, चूस  धन माल सहेजा।।

'शुभम्'  ढोर  से  हीन, जिंदगी करता  छोटी।

टपक  रही  है  लार, देख  पर चुपड़ी  रोटी।।


                         -4-

ढोंगी  अपने  ढोंग  में , रहते बड़े    प्रवीन।

तिलक छाप माला जपें,माल चाभते छीन।।

माल  चाभते  छीन, झूठ  की फैला  माया।

बहे न कण भी स्वेद,पल्लवित पोषित काया

'शुभम्' सभी परिवार,बाल सँग पोंगा-पोंगी।

करें  निराले   ढोंग,  देश  के सारे    ढोंगी।।


                         -5-

थोड़े निकलें पंख जब,उड़ जाते  नभ बीच।

छोड़ नीड़ शावक सभी,रहें न शोषक नीच।।

रहें न शोषक नीच,खगी खग उन्हें  न  पालें।

अपना  दाना आप, ढूँढ़ कर स्वयं  निकालें।।

'शुभम्' खगों  से सीख,मारना छोड़ हथौड़े।

मानव  की  संतान,कर्म से बन नर   थोड़े।।


🪴 शुभमस्तु !


२३.०८.२०२२◆१२.१५ आरोहणम् मार्तण्डस्य।


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