बुधवार, 31 अगस्त 2022

पावन गंगा घाट 🏞️ [ कुंडलिया ]

 351/ 2022

 

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✍️ शब्दकार ©

🌷 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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                           -1-

पावन     गंगा-घाट  पर,जाकर देखें   आप।

मिले भीड़   भारी वहाँ, धोती अपने   पाप।।

धोती अपने   पाप, बाँध  कर लाई    गठरी।

लगवा टीका  भाल, खा रही पूड़ी    मठरी।।

'शुभम्' नदी में देख, बड़ा ही दृश्य  सुहावन।

सिर पर हुए सवार,पाप होकर फिर  पावन।।


                            -2-

आएँ   गंगा-घाट   पर, बार-बार  कर  पाप।

बड़भागी  बन   आप  भी, मिटें देह-संताप।।

मिटें  देह-संताप, नहाना   तन मल-मल के।

करें बहुत नित पाप,पड़ौसी से जल-जल के।

'शुभम्'किए जो पाप, नहीं तृण भर पछताएँ।

मिला मनुज का रूप, पाप कर  गंगा  आएँ।।


                              -3-

धोती  गंगा पाप नित,फिर भी सदा   पवित्र।

औषधीय  गंगा  कहे,  मेरा विमल   चरित्र।।

मेरा  विमल  चरित्र, मिला कर पय में पानी।

बेच रहे  हैं 'भक्त', जीविका उन्हें   कमानी।।

'शुभं'तिलक दे भाल,ठगों की जाति न होती।

ठगते  बदलें  वेश, सरित  गंगा अघ  धोती।।


                         -4-

गंगा  में  रहते  सदा, मेढक, जलचर ,  मीन।

पाप नहीं  उनके  धुले,पतित योनि से हीन।।

पतित योनि से हीन,अभी तक जलचर सारे।

हुए न मनुज प्रवीण, नियति से   हारे   मारे।।

'शुभम्' न  गंगा-लाभ, दौड़ते जल  में  नंगा।

पहन  न  पाए   वेश, ठगी कर रहते   गंगा।।


                         -5-

गंगा   पावन   घाट पर,ठगियों की   भरमार।

तिलक,छाप, चंदन लगा, करते लूट अपार।।

करते लूट अपार,बदलते तन  की   हुलिया।

भक्तों को ठगमार,भरी नित जिनकी कुलिया

'शुभम्' न  कहना लूट,भले लूटें   कर  नंगा।

हर-हर जपते  जाप, लगा जयकारा    गंगा।।


🪴शुभमस्तु !


३०.०८.२०२२◆३.००प.मा.


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