330/2022
[पराग,काजल,किताब,फुहार,गौरैया]
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✍️ शब्दकार©
📚 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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💎 सब में एक 💎
कलिका से मिलता नहीं,अलि को प्रेम पराग
अंतर में कसमस करे, मंद-मंद सी आग।।
सुमन - कर्ण में भृंग ने,किया कुंज गुंजार।
लिपटा पीत पराग भी, मान रहा आभार।।
काजल मेघों का सजा,निकली चपला एक।
स्वर्ण - शाटिका सोहती,तारे जड़े अनेक।।
काली काजल कोर से,बढ़ी नयन की ओप।
पल भर भी रुकता नहीं, बाले तेरा कोप।।
पढ़ना क्या आसान है, तेरी देह - किताब।
कंचन-सी चमचम करे,रुके न पल को आब।
अक्षर पढ़े किताब के, पढ़े न जाने भाव।
गूढ़ पहेली यौवने, पल - पल बदले हाव।।
परस करों का देह पर,लगता मेघ - फुहार।
हे कामिनि!रह दूर ही,कल्लोलिनि-अवतार।
झर- झर झरें फुहार की,बुँदियाँ शीत अमंद।
स्पंदन हो देह में, भरे असीमानंद।।
घर के लता - निकुंज में,गौरैया का नीड़।
चहल-पहल चूँ - चूँ करे,नहीं चाहती भीड़।।
गौरैया तव नीड़ की, रहूँ तुम्हारे पास।
बस दाना - दुरका मिले,औऱ न कोई आस।।
💎 एक में सब 💎
होती नहीं पराग की,
काजल - वर्ण फुहार।
गौरैया करती 'शुभम्',
किस किताब को प्यार??
🪴 शुभमस्तु!
१७.०.८२०२२◆३.१५ आरोहणम् मार्तण्डस्य।
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