सोमवार, 22 अगस्त 2022

अपना तिरंगा🇮🇳 [ गीतिका ]

 334/2022


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✍️ शब्दकार ©

🇮🇳 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम् '

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वस्त्र  का  टुकड़ा  नहीं अपना तिरंगा।

जानता पल  को  नहीं झुकना तिरंगा।।


आन पर  अगणित  मिटे  हैं वीर अपने,

ठानता   है  रात -  दिन तपना तिरंगा।


केसरी  फहरा   रहा बलिदान का  रँग,

मानता है  नियति का लिखना तिरंगा।


मध्य  में   गोदुग्धवत   सित पट्टिका से,

शांति  के संदेश   नित  कहना तिरंगा।


चक्र    नीला   अहर्निश   संदेश   देता,

जागने   का ,   वायुवत   बहना तिरंगा।


देश  की  समृद्धि   की  धरती हरी   है,

युग - युगांतर  में  हरित  रहना तिरंगा।


देश   के  हर   नागरिक   का धर्म है  ये,

शान   में   ताजिंदगी    लखना  तिरंगा।


🪴 शुभमस्तु !


२१.०८.२०२२◆२.००पतनम मार्तण्डस्य।

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