310/2022
छंद विधान:
1.वर्णिक छंद।
2.क्रमशः 8सगण, II$×8= 24 वर्ण।
3.चार चरण समतुकांत।
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✍️शब्दकार ©
🪷 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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-1-
शिवजी सबका दुख दूर करें,
जन जीवन में नहिं त्रास रहे।
हर ओर खिले बगिया जन की
सुमनावलि मंद सुवास रहे।।
जग के प्रभु पालक घालक हो
तुम से सब जीवन लाह लहे।
सब जीव करें निज काज सदा
जस बीज पड़े तस पौध रहे।।
-2-
वन, बाग, तड़ाग सु अम्ब भरे,
घनघोर घटा नभ से बरसे।
पशु,मानव,कीर,विहंग स भी,
लखि सावन के घन को हरषे।।
नर,नारि, युवा सब मोद करें,
हलवीर किसानअमंद हँसे।
छत ,आँगन,खेत हरे जल से,
हरिताभ नई सुषमा विलसे।।
-3-
कल कंज कली सर में विकसी,
रवि देख रही हँसती खिलती।
षटपाद रहे रत गुंजन में,
मधु लोभ सु-चाह यहीं पुरती।
तल तीर तिरे बहु पात हरे,
जल बूँद न एक वहाँ टिकती।
जल पंकनु में खिलते जनमे,
पर पंक कु- गंध नहीं मिलती।।
-4-
बड़री-बड़री अँखियाँ लखि के,
मुरलीधर श्याम भए रस में।
झट होंठ धरी मुरली हरि ने,
ध्वनि गूँज उठी सजनी नस में।।
वन कुंजन में रस धार बही,
जल जीव नचे जमुना जल में।
पशु कीर भए मनमीत सभी,
हरषीं द्रुम बेल धरा तल में।।
-5-
करुणा कर दीन दयालु प्रभो,
तव नेहिल मेघ सदा बरसे।
सबका हित साधन हो करते,
जन एक न भोजन को तरसे।।
सुख शांति रहे नव कांति बहे,
जनमा जग में उर में हरसे।
शुभता सबको हर भाँति मिले,
कर दे कुछ त्याग निजी कर से।।
🪴 शुभमस्तु !
०२.०८.२०२२◆८.००
पतनम मार्तण्डस्य।
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