331/2022
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✍️ शब्दकार ©
🇮🇳 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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देशभक्ति होती नहीं, तारीखों को देख।
बनता शुभ इतिहास तब,रच कर्मों का लेख।
लगा तिरंगा वैन पर, दौड़ा भक्त महान।
टॉल अदा करता नहीं, रँग बाजी की शान।।
बिना काज बिजली जले,पंखा भी पुरजोर।
देशभक्ति की शान में, करे तिरंगा शोर।।
नल को तेज जुकाम है,नगरपालिका मौन।
लगा तिरंगा वैन पर,गया भक्त वह कौन??
सबमर्सिबल भक्त की, चलती धारासार।
टंकी पर फहरा रहा, देश भक्ति का प्यार।।
नियम तिरंगा के नहीं, भक्त जानते एक।
फहराना ही ध्येय है,फैशन की है टेक।।
छत की भग्न मुँडेर पर,फहरा बिना विचार।
एक तिरंगा रेशमी, सजे तिपहिया कार।।
अंगवस्त्र बनियान के,भी होते कुछ रूल।
टाँग तिरंगा भक्त जी, गए एकदम भूल।।
'सब कुछ' करने के लिए,देश हुआ आजाद।
आड़ तिरंगे की भली,नियम -भंग का स्वाद।
टाँग दिया छत, कार पर,गए भक्तगण भूल।
कौन तिरंगे को रखे, सीखा नहीं उसूल।।
समझ तिरंगे को लिया,अपनी पेंट कमीज़।
नहीं उतारें आठ दिन,शेष न रही तमीज़।।
🪴 शुभमस्तु !
१८.०८.२०२२◆८.१५ आरोहणम् मार्तण्डस्य।
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