शुक्रवार, 5 अगस्त 2022

आदमी का कर्तापन 🛝 [ अतुकान्तिका ]

 313/2022

 

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✍️ शब्दकार ©

🎋 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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किसी का बुरा

तूने जो किया है,

रहना है उसे 

तेरे ही पास में सदा,

वह तेरा है

किसी और का नहीं।


किसी का भला 

करने वाले,

भले भूल जा ,

कभी न कभी

वह  आएगा

लौटकर तेरे ही पास।


बुरा भी तेरा,

भला भी तेरा!

कुछ भी किसी

और का नहीं,

कर्ता है तू

तो भोक्ता कोई

औऱ क्यों होगा?


इतना यदि समझता,

समझ पाता,

तो किसी का बुरा

कर नहीं पाता,

पर अब क्या?

अब तेरा 

कुछ भी नहीं

हो सकता!

निकला हुआ तीर

कमान में लौटता नहीं।!

करने से पहले

आदमी कभी

सोचता नहीं!


किसी का बुरा करने में

कहाँ गया तेरा

कर्ता भाव,

जहाँ देता रहा

तू किसी औऱ को घाव,

क्योंकि उसके 

करने में था

तेरा समग्र चाव!

लगा - लगा कर 

किसी आखेटक की 

तरह दाँव !


भला करने में

बन गया 

पूरी तरह कर्ता,

प्रचार करता हुआ

धरती पर पसरता,

उस पुण्य में भी

पाप का बीज

 शनैः शनैः पनपता!

अल्पकालोपरांत

पूरा दरख़्त बन उभरता!


आदमी आमरण 

नहीं सुधरता,

बसा हुआ संस्कार

जीवन भर उमड़ता,

जिसके वशीभूत वह

गलत - सही करता,

रह नहीं पाती 

मानव में स्थिरता!

वक्त आने पर 

काल के गाल में

आरा मशीन  में 

काष्ठ की तरह  चिरता,

जब लौह शृंखलाओं के बीच

बिना चीखे चिल्लाए घिरता


🪴 शुभमस्तु !


०४.०८.२०२२ ◆ ३.३० पतनम मार्तण्डस्य


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