रविवार, 14 अगस्त 2022

आजादी का नाम ! 🇮🇳 [ गीत ]

 324/2022


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✍️ शब्दकार ©

🇮🇳 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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राजनीति की चादर ओढ़ी,

आजादी का नाम,

बदल गए हैं गाँव।


फहर उठे हैं खूब तिरंगे,

घर छत में द्वारों पर,

आजादी का जश्न मनाते,

गले  पड़े  हारों  तर,

देश प्रेम का फीता,

काटे   नेता   रीता,

मची लूट  की  काँव।


नगरपालिका का नल बहता,

सुर्र  -  सुर्र दिन रातें,

कागज  में  योजना  फूलती, 

लंबी  -  चौड़ी  बातें,

दिन में लट्टू जलते,

खाते चलते - चलते,

नहीं पेड़  की  छाँव।


सबसे ऊपर रहना हमको,

यही  हमारा  बाना,

माल और का  घर में आए,

गर्दभ  बाप  बनाना,

जपते  राम  ही राम,

नोटासन में विश्राम,

लग जाए  बस  दाँव।


आजादी के स्वरित तराने,

ध्वनि विस्तारक गाता,

नेता माल कहाँ मिल जाए,

इसकी जुगत  भिड़ाता,

है  आजीवन  बीमा,

आजादी का कीमा,

नित्य बदलता ठाँव।


🪴 शुभमस्तु !


१४.०८.२०२२◆३.३० 

पतनम मार्तण्डस्य।

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