शनिवार, 6 अगस्त 2022

सबके अलग-अलग पैमाने ! 🚦 [ व्यंग्य ]

 

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व्यंग्यकार © 

 🛝 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्

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 यहाँ सबके पैमाने अलग - अलग हैं। सबकी अलग- अलग सोच और समझदानी का परिणाम है कि पैमाने ही बदल गए।पुराने समय में आजकल की तरह माता-पिता अथवा स्वयं लड़की अपने लिए वर की तलाश नहीं करते थे।परिवार के लोगों द्वारा नाई - बाँभन पर इतना अधिक विश्वास किया जाता था कि इस कार्य का दायित्व उन्हें ही सौंप दिया जाता था। वे दोनों जहाँ भी रिश्ता तय कर देते थे ,विवाह वहीं कर दिए जाते थे।

     एक बार एक गाँव में एक माँ- बाप ने अपनी युवा विवाह योग्य पुत्री के रिश्ते के लिए गाँव के ही बाँभन और नाई को भेज दिया और उनके पूँछने पर बता दिया कि लड़के की उम्र लगभग उन्नीस बीस इक्कीस होनी चाहिए।वे दोनों लोग कहीं दूर गए औऱ कुछ दिन बाद लौटकर आ गए और बताया कि वे उनकी बेटी का रिश्ता तय कर आए हैं। जब उन्होंने भावी वर की उम्र के विषय में पूछा तो बताया गया कि उन्होंने जो बताया था , उसी उम्र का लड़का है, यही कोई उन्नीस बीस इक्कीस का।घर वाले संतुष्ट हो गए।कुछ समय व्यतीत हुआ और वह शुभ दिन भी आ गया जिस दिन बारात आने वाली थी।ढोल पीपनियों के बैंड के साथ बारात भी दरवाजे पर आ गई।अगवानी की गई ।किन्तु जब गाँव की जनता औऱ घर वालों ने वर को घोड़ी पर मुँह लटकाए हुए,घोड़े की जीन में पैरों को अटकाए हुए ,कमर को झुकाए हुए देखा तो उनकी आँखें खुली की खुली रह गईं।तुरंत नाई -बाँभन की जोड़ी को तलब किया गया, इस साठ साल के बूढ़े के साथ जवान बेटी का रिश्ता तय करके आए हैं, तो उन्होंने भी स्पष्ट उत्तर देते हुए पल्ला झाड़ लिया कि आपने ही तो कहा था कि उन्नीस बीस इक्कीस का होना चाहिए । उन्नीस बीस औऱ इक्कीस कितने हुए ? साठ ही न! इसमें हमारा क्या दोष।उनके पैमाने के तर्क से हारकर कर विवश माँ - बाप को उस साठ वर्षीय वर के साथ अपनी बेटी की शादी करनी पड़ी।तब से हर माँ -बाप ने नाई - बाँभन का विश्वास खो दिया और स्वयं वर पसंद करने जाने लगे।


     ये आदमी जीव ही ऐसा है कि इसके पास अपने प्रत्येक गलत कार्य के लिए बेजोड़ सफाई है। अकाट्य तर्क हैं।ग़लत को भी सही ठहरा देने की सूझबूझ पूर्ण तरकीबें हैं। किसी चोर ,डकैत, गिरहकट, अपहर्ता, गबनी, दुष्चरित्र, बेईमान के पास इतनी सफाइयाँ, तर्क और खूबियाँ हैं कि अच्छे -अच्छे जज भी चक्कर खा जाएँ।इसीलिए तो अदालतों में फैसले सही समय पर नहीं हो पाते और अपराधी साफ बच जाते हैं।निरपराध कारागार की रोटियाँ तोड़ते हैं। पानी में दूध मिलाने वाला कहता है कि आज भैंस ज्यादा पानी पी गई इसलिए दूध पतला है।दूध में पानी नहीं मिलाया , पर जो किया है उसे किसी को नहीं जताया कि दोहनी के पानी में ही धार को गिराया ! 

         तर्क के मामले में पढ़ा- लिखा आदमी वकील बराबर,और बिना पढ़ा-लिखा खुदा बराबर। गँवार से भगवान भी हारे। बुद्धिमान तो एक ओर मुँह तकते बेचारे। शायद इसीलिए कहा गया है कि गँवार, बुद्धिमान ,पागल और स्त्री से कभी बहस नहीं करनी चाहिए। इनसे बहस करने से पहले सोच लेना चाहिए कि हार भले ही न हो ,पर हार माननी ही पड़ेगी। आदमी ,इसलिए आदमी नहीं कि वह किसी से भी हार मानेगा! उसे येन- केन- प्रकारेण जीत ही चाहिए।साम,दाम ,दंड ,भेद ;कितनी ही तरकीबें हैं उसे जिताने के लिए।अपनी युक्तियों के बल पर भी वह हाथी जैसे विशाल, शेर चीता जैसे हिंसक औऱ खूँख्वार पशु और सर्प जैसे विषैले जीव को भी अपने चाबुक तले रौंद देता है। आदमी के लिए आदमी चीज ही क्या है! इसीलिए आदमी ,आदमी का स्थाई मित्र नहीं है।उसकी मित्रता भी सशर्त है।अब शर्त जो भी हों। दृश्य हो या अदृश्य ; परंतु क्या आदमी कभी ऐसा भी हो सकता है कि बिना शर्त मिताई करे!सूक्ष्म अदृश्य धागे के बराबर अवश्य स्वार्थ की शर्त होगी ही।यह गहन शोध का गहन विषय है।

         आदमी का पैमाना कब ,कहाँ, कितना परिवर्तित हो जाएगा, कुछ कहा नहीं जस सकता। ये सब स्थितियों, परिस्थितियों पर निर्भर करता है।इसीलिए उसने एक दूसरे का विश्वास खो दिया है ।वह अपने पालतू कुत्ते पर विश्वास कर लेगा ,परंतु अपने चौकीदार पर नहीं।अपने गधे पर विश्वास कर सकता है ,पर गधा चराने वाले पर नहीं। लोग कहते हैं कि जमाना बदल रहा है। जमाना बदल नहीं रहा ,अब वह जम नहीं रहा। उखड़ रहा है।आदमी के दिमाग की माँग उसे कहाँ ले जाएगी, अकल्पनीय है।आदमी के दिमाग की माँग में नीति और नैतिकता को तो भूल ही जाइए।पुराने पैमाने तोड़ने औऱ नए- नए बनाने की उसकी हॉबी अनन्त तक ले जाने वाली है। यही तो उसकी खूबी निराली है।

 🪴शुभमस्तु ! 

 ०६.०८.२०२२◆८.१५ आरोहणम् मार्तण्डस्य।


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