बुधवार, 24 अगस्त 2022

शब्द -रसांजन 🍎 [ दोहा ]

 339/2022

  

[झरोखा, छीर,तीर,बिजना,मौका]

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✍️ शब्दकार ©

🍑 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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    🪂 सब में एक 🪂

नयन- झरोखा बैठकर, देख  लिया संसार।

दुर्लभ छवि हे कामिनी, तू रति की अवतार।

बंद झरोखा चारु दृग,फिर भी दिखते श्याम

सूर  नहीं  हिय  से हुए, दर्शन दें   अविराम।।


यमुना-जल गोपी घुसीं,तन पर वस्त्र न छीर।

कान्हा को  भाया नहीं, जब आए   वे  तीर।।

गो माता के  छीर का, जग में  पावन  नाम।

जी भर कान्हा ने पिया,गोपालक अभिराम।।


राधा, मोहन, गोपियाँ, आए यमुना - तीर।

क्रीड़ा कुंजों में करें,पिक शिखि सुंदर कीर।।

मार  नहीं   दृग - तीर तू, उर में होते  घाव।

हे कामिनि ब्रज-अंगने, बदल रहे मम भाव।।


बिजना की सद वायु से,मिले न उर को चैन।

घायल मम अंतर हुआ,मिले श्याम  से नैन।।

बिजना विरहिन को नहीं,भाए  नींद न रैन।

जब  से  नैनों  में   बसे, मदन मुरारी   मैन।।


प्रेमी मौका  देख कर, ढूँढ़ प्रिया  का  गेह।

गुपचुप जा मिलने गया,जतलाने उर -नेह।।

मौका जो नर छोड़ता, पछताता  सौ  बार।

स्वर्णिम क्षण मिलते कभी,बंद न करना द्वार


   🪂  एक में सब  🪂

खोल झरोखा  गेह  का,

                       सरि   यमुना के    तीर।

बिजना ले  बाला   खड़ी,

                     मौका  पा  कर छीर ।।


🪴शुभमस्तु !


२३.०८.२०२२◆१०.३० 

पतनम मार्तण्डस्य।


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