664/2025
©शब्दकार
डॉ०भगवत स्वरूप 'शुभम्'
धूप क्यों
शरमा रही है
आ गया है मीत अगहन।
भोर
अँगड़ाई लिए
अब उठ गई है
एक
पिड़कुलिया
भजन गाती उठी है
दाल
अरहर में
उठा सम्प्रीत अदहन।
बाजरा मकई
चने की रोटियों में
सोंधता जाड़ा
साग सरसों का
लुभाता
घृत ओढ़ कर गाढ़ा
पहन
स्वेटर धूप में
क्रीड़ा करे चुनमुन।
दुल्हनें
दूल्हे सभी
सजने लगे हैं
घोड़ियों के
पाँव
फिर घुँघरू बजे हैं
कुकड़कूँ की
बांग से
गहरा गया है शीत उन्मन।
शुभमस्तु !
03.11.2025●3.00प०मा०
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