रविवार, 30 नवंबर 2025

बारात के बिन बैंड का क्या? [ नवगीत ]

 701/2025


   

©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


घोड़ी सजी

दूल्हा नहीं

बारात के बिन बैंड का क्या?


हाथ में 

चिमटा लिए

वीरांगना है

उधर 

दारू में मगन

धुत साजना है

कहती यही

बीबी नहीं

घर में रहे हसबैंड  का क्या?


गद्दे रजाई 

से भरे

कुर्सी पड़ी सोफे पड़े

चादरें

तंबू कनातें

पोल भी ऊँचे खड़े

दावतों की

मेज सुंदर

फंक्शन नहीं तो टैंट का क्या?


अलमारियों में

नोट की

सोना भरा है

आदमी पर

आदतों का

चरपरा है

सैकड़ों एकड़

जमी बंजर पड़ी

बीज ही बोया नहीं तो लैंड का क्या?


शुभमस्तु !


29.11.2025●1.45प०मा०

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