702/2025
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
नहीं सहजता
उसे सुहाए
लीपापोती में चित लाए।
ऊपर से
कुछ लगा आवरण
नर-नारी को सहज सुहाता
करे बनावट
कहे सजावट
मानव से वानर छवि पाता
बँधे केश
फैशन से बाहर
इसीलिए कुंतल बिखराए।
गोरी खाल
मगज़ में बसती
मानदंड है सुंदरता का
अश्वा की
बन जाय गर्दभी
दिल्ली से तुम जाओ ढाका
चाल चले
कौवा मराल की
चटक-मटक में इतरा जाए।
जाँच लिया
स्वभाव मानव का
खुली कंपनी धंधे पनपे
जैसा है
वैसा न भावता
रहें न यद्यपि कपड़े तन पे
प्रभु ने
गलती कर दी सारी
जो मानव के रूप बनाए।
शुभमस्तु !
29.11.2025●2.15प०मा०
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