रविवार, 30 नवंबर 2025

दुर्लभ मानुष योनि है . [ दोहा ]

 703/2025



[मानव, मनुज, मानुष, आदमी,जन]


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'

      

                 सब में एक

जल थल नभ के जीव में,मानव सबसे श्रेष्ठ।

यद्यपि तन  से  ह्वेल गज,होते हैं अति ज्येष्ठ।।

मानवता यदि हो नहीं, क्या मानव से लाभ।

अगर   कर्म   से  हीन है, निंदनीय वह नाभ।।


मनुज योनि    यों ही नहीं, मिल पाती है  मीत।

करता   है   सत्कर्म  जो, वही   पा सके जीत।।

इसी   मनुज की देह में,दनुज बसें यह   सत्य।

सदाचरण   व्यवहार  में,  छिपा  वस्तुतः तथ्य।।


दुर्लभ  मानुष  योनि है, मिले न बार हजार।

बोए बीज   बबूल  का,शूल  करें  तन पार।।

बार - बार  मानुष बने, कर्म करे यदि  मित्र।

रखना  सदा सँवार के, चंचल चपल चरित्र।।


पतन आदमी का हुआ, करता है दुष्कर्म।

सता रहा है दीन को, दुखित हुआ है मर्म।।

सभी आदमी का कभी,करना मत विश्वास।

मानव तन के  वेश  में, कर  बैठे उपहास।।


जन   गण में  जन एक से,होते नहीं समान।

कुछ भोले हैं गाय-से,  लिए   धनुष कुछ बान।।

जनता से  जन तंत्र  है,बड़ा जटिल जनलोक।

देशभक्त   सब   ही नहीं,बाँट  रहे कुछ शोक।।


                एक में सब

मानव मनुज समाज में,सभी न मानुष रूप।

सभी   तरह के आदमी, जन खोदें  कुछ कूप।।


शुभमस्तु !


29.11.2025●8.15 प०मा०

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