बुधवार, 7 दिसंबर 2022

जाड़ा!जाड़ा!! जाड़ा!जाड़ा!!🔥 [बालगीत ]

 512/2022

 

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✍️ शब्दकार ©

🌻 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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जाड़ा!   जाड़ा!!     जाड़ा! जाड़ा!!

गई        दिवाली        झंडा   गाड़ा।।


गर्मी       वर्षा         विदा    हो    गए।

आँधी    पानी       कहीं     खो   गए।।

बोला       कुकड़ूँ         खोले   बाड़ा।

जाड़ा !    जाड़ा!!      जाड़ा! जाड़ा!!


कहते        सब     उसको  जड़काला।

जाड़े     का     यह       काल निराला।।

पीते           बाबा   -    दादी     काढ़ा।

जाड़ा !    जाड़ा!!     जाड़ा! जाड़ा!!


तनी           दूधिया       चादर  भारी।

दिखते        वाहन         नहीं सवारी।।

पीता       दूध        भैंस    का पाड़ा।

जाड़ा !      जाड़ा !!    जाड़ा !जाड़ा!!


कम्बल         शॉल     रजाई  आए।

ढँककर      देह         सभी  गरमाए।।

गिलहरियों        ने        बोरा  फाड़ा।

जाड़ा!     जाड़ा!!     जाड़ा! जाड़ा!!


घर  -  घर      बुने     जा    रहे स्वेटर।

बंधे     कान    से     कसकर मफ़लर।।

खाते         मीठी      गज़क , सिंघाड़ा।।

जाड़ा !     जाड़ा !!     जाड़ा !जाड़ा!!


🪴शुभमस्तु!


06.12.2022◆7.00प.मा.


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