512/2022
■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■
✍️ शब्दकार ©
🌻 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■
जाड़ा! जाड़ा!! जाड़ा! जाड़ा!!
गई दिवाली झंडा गाड़ा।।
गर्मी वर्षा विदा हो गए।
आँधी पानी कहीं खो गए।।
बोला कुकड़ूँ खोले बाड़ा।
जाड़ा ! जाड़ा!! जाड़ा! जाड़ा!!
कहते सब उसको जड़काला।
जाड़े का यह काल निराला।।
पीते बाबा - दादी काढ़ा।
जाड़ा ! जाड़ा!! जाड़ा! जाड़ा!!
तनी दूधिया चादर भारी।
दिखते वाहन नहीं सवारी।।
पीता दूध भैंस का पाड़ा।
जाड़ा ! जाड़ा !! जाड़ा !जाड़ा!!
कम्बल शॉल रजाई आए।
ढँककर देह सभी गरमाए।।
गिलहरियों ने बोरा फाड़ा।
जाड़ा! जाड़ा!! जाड़ा! जाड़ा!!
घर - घर बुने जा रहे स्वेटर।
बंधे कान से कसकर मफ़लर।।
खाते मीठी गज़क , सिंघाड़ा।।
जाड़ा ! जाड़ा !! जाड़ा !जाड़ा!!
🪴शुभमस्तु!
06.12.2022◆7.00प.मा.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें