659/2025
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
-1-
बालक मैं अनजान हूँ,हे प्रभु जी श्रीराम।
कृपा करो इस दास पर,भजूँ आपका नाम।।
भजूँ आपका नाम, बुद्धि प्रभु ऐसी देना।
करूँ हितैषी काम, नाव मेरी नित खेना।।
'शुभम्' शरण में आज,पिता-माता हो पालक।
महिमा से अनजान, आपका नन्हा बालक।।
-2-
आया था संसार में, सबसे मैं अनजान।
मिले जनक-जननी सभी, गुरुजन श्रेष्ठ महान।।
गुरुजन श्रेष्ठ महान, मित्र सम्बंधी सारे।
प्रिय पत्नी संतान, प्रणय सह नेह दुलारे।।
'शुभम्' जगत का राग, रंग जब मुझको भाया।
अपनाया संसार , जन्म ले जग में आया।।
-3-
लेना मत अनजान से, मित्र कभी आहार।
पथ में हो या गेह में, पावन हो आचार।।
पावन हो आचार, किसी से क्या है आशा।
भरे स्वार्थ से लोग, न पाले कभी दुराशा।।
'शुभम्' आप निज नाव,सदा जगती में खेना।
सगा न कोई बंधु, किसी से कुछ मत लेना।।
-4-
मिलते राही राह में, सत पथ से अनजान।
पता नहीं होता जिन्हें, निज गंतव्य महान।।
निज गंतव्य महान, भटकते भूलभुलैया।
गिरते हैं जब गर्त, चीखते दैया-दैया।।
'शुभम्' वहीं बहु फूल,बाग में शोभन खिलते।
जिन्हें राह का ज्ञान, अल्पतम ऐसे मिलते।।
-5-
करता लालच आदमी , बना हुआ अनजान।
खा जाता धोखा वही, समझे स्वयं महान।।
समझे स्वयं महान, राह में भटका रहता ।
बिना लिए पतवार, खिवैया सरि में बहता।।
'शुभम्' भरे कुविचार, गर्त में जा गिर मरता।
मन को रखे सुधार, वही पथ पूरा करता।।
शुभमस्तु !
30.10.2025● 8.45प०मा०
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