704/2025
समांत : अल
पदांत : अपदांत
मात्राभार : 16
मात्रा पतन : शून्य
© शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
सकल विश्व में मचती हलचल।
शांति हनन होता है हरपल।।
तन-मन से बेचैन आदमी।
उसे न पड़ती पल भर को कल।।
गर्त पतन का विषम गहनतम।
रहा प्रगति का अब सूरज ढल।।
सिंधु शरण में सरिता प्रसरित।
नित्य निरंतर कलकल है जल।।
सीधी चाल न चले आदमी।
वक्र हुए हैं मस्तक के बल।।
नगरपालिका वाले सोते।
बहें सड़क पर अविरल ये नल।।
'शुभम् ' तीसरा नेत्र खुला है।
निखिल जगत में रुद्र अमंगल।।
शुभमस्तु !
01.12.2025●5.00आरोहणम मार्तण्डस्य।
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