मंगलवार, 2 दिसंबर 2025

तन-मन से बेचैन आदमी [ सजल ]

 704/2025


         

समांत          : अल

पदांत           : अपदांत

मात्राभार      :  16

मात्रा पतन   : शून्य


© शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


सकल   विश्व   में  मचती  हलचल।

शांति    हनन  होता  है     हरपल।।


तन-मन     से   बेचैन        आदमी।

उसे   न पड़ती पल भर   को कल।।


गर्त    पतन  का  विषम   गहनतम।

रहा  प्रगति का अब   सूरज   ढल।।


सिंधु  शरण  में    सरिता  प्रसरित।

नित्य   निरंतर   कलकल है  जल।।


सीधी   चाल   न    चले     आदमी।

वक्र  हुए हैं    मस्तक     के   बल।।


नगरपालिका         वाले      सोते।

बहें  सड़क पर  अविरल   ये  नल।।


'शुभम् '   तीसरा    नेत्र   खुला  है।

निखिल  जगत में   रुद्र   अमंगल।।


शुभमस्तु !


01.12.2025●5.00आरोहणम मार्तण्डस्य।

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